चुनाव परिणामों से साबित होता है कि कांग्रेस के लिए अब बेहद खुशी के दिन धीरे-धीरे सिमटते जा रहे हैं


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों से साबित होता है कि कांग्रेस के लिए अब बेहद खुशी के दिन धीरे-धीरे सिमटते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश की कमान स्वयं कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने संभाल रखी थी, मगर वे अखिलेश यादव के मुकाबले हर क्षेत्रा में मात खा गये। दरअसल, कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि शासन चलाने का उसका अपना एक घिसा-पिटा फार्मूला है, उससे बाहर निकलने के लिए वह किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है। वह किसी भी कीमत पर यह मानने के लिए लिए तैया नहीं है कि महंगाई और भ्रष्टाचार भी कोई मुद्दे हैं। माना कि देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है, मगर इतना भी नहीं है कि हद से ज्यादा महंगाई झेलने के लिए देश की जनता तैयार है। यूपीए सरकार में निर्णय लेने की क्षमता का निरंतर हरास होता जा रहा है। सामूहिक नेतृत्व के अभाव में पार्टी मात्रा सोनिया गांधी पर निर्भर हो गई है। प्रधानमंत्राी डाॅ. मनमोहन सिंह जरूर हैं, मगर वे कितने शक्तिशाली हैं, यह पूरे देश को पता है।

कांग्रेस पार्टी को इस बात का बहुत गुरूर था कि शासन चलाना सिर्फ उसे ही आता है, मगर उसका यह गुरूर अब धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। कांग्रेस पार्टी सोचती है कि चुनाव जितवाने एवं किसी भी पार्टी के पक्ष में वातावरण बनाने में सरकारी कर्मचारियों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए समय-समय पर सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते बढ़ा दिये जाते हैं, मगर उसे यह भी समझना चाहिए कि सिर्फ सरकारी कर्मचारियों का पेट भर जाने से पूरे देश के लोगों का पेट भरने वाला नहीं है। इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक की दाल-रोटी इज्जत से चले, इसके लिए सभी सरकारों को ध्यान देना चाहिए। अभी हाल ही में जब गोवा के मुख्यमंत्राी ने पेट्रोल के दाम घटाये तो उनके इस कदम की काफी सराहना हुई। कोई खाकर परेशान हो, काई खाने बिना मरे, यह स्थिति बहुत दिनों तक चलने वाली नहीं है।

चूंकि, देश में कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो सबसे अधिक व्यापक है। इसी पार्टी को सभी अर्थों में धर्मनिरपेक्ष एवं सबकी पार्टी पार्टी कहा जा सकता है। अन्यथा हर दल की अपनी एक विशिष्ट पहचान है। क्षेत्राीय र्पािर्टयां अपने क्षेत्राीय हितों को ही अधिक प्रमुखता देती हैं। भारतीय जनता पार्टी भी अभी तक सही अर्थों में धर्म-निरपेक्ष नहीं बन सकी है। हालांकि, वह इसके लिए लगातार प्रयासरत है। अतः इन परिस्थितियों में कांग्रेस को यदि देश में लंबे समय तक अपनी भूमिका का निर्वाह करना है तो उसे गंभीर चिंतन करना होगा, अन्यथा उसके गढ़ धीरे-धीरे ध्वस्त होते जायेंगे और वह मूक दर्शक बनकर सिर्फ तमाशा देखती रह जायेगी। क्योंकि देश की जनता अब उसके चाल-चरित्रा को अच्छी तरह समझ चुकी है। इसलिए अब उसे जन-भावनाओं को ध्यान में रखकर अपने अंदर सुधार करना होगा।