सड़क पर कमजोर पड़ती संघर्ष की धार


संपादकीय जुलाई 2012

आज देश में तमाम तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। उनमें से कुछ समस्याएं ऐसी हैं, जो सरकार की नाकामी एवं निकम्मेपन के कारण उत्पन्न हो रही हैं। सरकार की तरफ से जब भी कोई जनविरोधी फैसला किया जाता है तो उसका विरोध होता है। विरोध मुख्य रूप से विपक्षी दलों की तरफ से किया जाता है। विपक्ष की तरफ से आज भी आये दिन धरने-प्रदर्शन एवं अन्य तमाम तरीकों से विरोध किया जा रहा है। मगर विरोध की धार उतनी तेज देखने को नहीं मिलती है जितनी होनी चाहिए। उसका कारण संभवतः यही है कि सड़क पर संघर्ष करने वालों की संख्या में निरंतर कमी आ रही है। संघर्ष जो भी हो रहे हैं, वे या तो दिखावे के लिए हो रहे हैं या मात्रा औपचारिकता पूरी करने के लिए हो।

आज देश में प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी बहुत मजबूत है, मगर उसके विरोध के तौर-तरीकों में वो प्रभावशीलता नहीं है, जो होनी चाहिए। सड़क पर आकर वास्तव में संषर्घ वही कर सकता है, जो आम जनता के बीच रहता हो, निःस्वार्थ भाव से राजनीति करता हो। मगर देखने में आ रहा है कि आजकल के अधिकांश नेता सुख-सुविधा की जिंदगी जीने वाले एवं ऐशो-आराम के आदी हो गये हैं। उदाहरण के लिए इस समय गर्मी का मौसम है। इस मौंसम में घर से निकलते हैं तो एसी गाड़ी में, आफिस में जाते हैं तो वहां भी एसी का प्रयोग करते हैं और जब घर पर होते हैं तो वहां भी एसी का प्रयोग करते हैं। लेकिन जब सड़क पर उतरेंगे तो वहां एसी तो मिलेगा भी नहीं, इसलिए ये नेता सड़क पर जब संघर्ष के लिए उतरते हैं तो परेशान हो जाते हैं।

अभी हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने 22 जून को पूरे देश में जेल भरो आंदोलन किया। मुश्किल से वह आंदोलन 5 घंटे का भी नहीं रहा होगा, मगर उतने वक्त में ही यह देखने को मिला कि तमाम नेताओं को बड़ी परेशानी होने लगी। कुछ लोगों को चक्कर आने लगा तो कुछ लोगों को उल्टी होने लगी। चक्कर आना या उल्टी होना कोई अनहोनी बात नहीं है, मगर आज यह सब बदलती लाइफ स्टाइल के कारण हो रहा है। लोगों की लाइफ स्टाइल इतनी आराम तलबी की हो गई है कि ऐसी परेशानियां हो रही हैं, वरना इसी भीषण गर्मी में मजदूर एवं आम आदमी दिन भर अपनी आजीविका के लिए सड़क पर काम कर रहा है। जब आम आदमी सड़क पर काम कर सकता है तो खास लोग क्यों नहीं कर सकते हैं।

दरअसल, आम आदमी की लड़ाई आम आदमी बनकर ही लड़ी जा सकती है, वरना खास बनना तो सभी लोगों की इच्छा है। आज यही कारण है कि विपक्ष अपने संघर्ष से आम आदमी को प्रभावित नहीं कर पा रहा हैं। वर्तमान समय में एक बड़ी समस्या यह है कि विपक्ष कब विपक्ष की भूमिका निभायेगा, कब मित्रा विपक्ष की भूमिका, इस बात का कोई भरोसा नहीं है। कभी-कभी ऐसा देखने में मिलता है कि किसी मुद्दे पर तो विपक्ष बड़ा बेजोड़ संघर्ष करता है, मगर उस मसले को बिना अंजाम तक पहुंचाये एकदम शांत हो जाता है। अचानक शांत हो जाने से लोगों के मन में संदेह पैदा होने लगता है।

पहले विपक्ष संख्या में भले ही कम होता था, मगर किसी भी बात पर वह अपनी आवाज मजबूती से उठाता था और उसकी आवाज सुनी भी जाती थी, क्योंकि उस समय विपक्ष वास्तव में सड़क पर संघर्ष करता था। आज नेताओं को अपनी छवि मीडिया एवं मैनेजमेंन्ट कंपनियों की बदौलत संवारने की जरूरत महसूस हो रही है। आज कुछ लोगों को इस बात का भ्रम है कि नेता वही है, जो मीडिया में है, मगर यह सच्चाई नहीं है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम सड़क पर आकर अपनी आवाज बुलंद करें, सरकार के जन विरोधी फैसलों का विरोध करें और विकास परक मुद्दों का समर्थन करें।