मुख रूप से चटकीले और भड़कीले रंगों के उपयोग के साथ-साथ रंग-बिरंगे नृत्यों द्वारा हर्षोल्लास के चित्रों का चित्राण लिए पंजाब। की पेंटिंग व छपाई की कई विशेषताएं हैं। इन पंेटिग्ंस में और अधिक उभार लाने के लिए गोल्डन कलर का भी इस्तेमाल किया जाता है। पंजाब का धार्मिक स्थल जो कि स्वर्ण मंदिर के नाम से विश्व भर में प्रसिद्ध है और अपने आप में एक अनूठी आस्था का कंेद्र है व सामाजिक ताने-बाने का प्रतिनिधित्व करता है, इस गोल्डन कलर के प्रति लगाव को भी दर्शाता है।
प्राचीन काल से ही पंजाब का एक भाग सफेद कपड़े को रंग कर हाथों के द्वारा उस पर रंग-बिरंगे चित्राण करना इत्यादि रहा है। इन चित्रों में धार्मिक मान्यताओं को दर्शाने के साथ-साथ अपनी अन्य कलाओं में ज्वलंत चित्रों का चित्राण किया जाता है। ये कपड़े अधिकतर दुपट्टे, सूट, रूमाल, बेड कवर, टेंट कवर इत्यदि में रोजमर्रा की जिंदगी में पंजाब के किसी भी भाग में देखे जा सकते हैं। पहले तो जिन रंगों का इस्तेमाल किया जाता था, वे पेड़-पौधे, फल-सब्जियों से प्राप्त किये जाते थे परंतु समय के चलते रासायनिक रंग या बाजारू रंगों का भी इस्तेमाल होने लगा है।
पंजाब के चित्रों में मुगल कालीन झलक के साथ-साथ बिलासपुर, कांगड़ा, हिमाचल या यूं कहिए कि आस-पास मंे लगने वाले राज्यों की झलक लिए हुए और देखने को भी मिलती है।
पंजाब का हिस्सा चूंकि मेहनत पसंद लोगों का एक प्रकृति प्र्रेमी प्रदेश है। जो कि मेहनत कर पंजाब की जमीन को अन्य प्रदेशों के मुकाबले उपजाऊ बनाये रखते हैं। हर मौसम एवं परिस्थिति में ये अपनी वीरता और लगन के साथ कार्य करते रहते हैं और प्रकृति को रिझाने और लुभाने के लिए गायन, संगीत और नृत्य के साथ शरीर की पूरी क्षमताओं के साथ अंगीकार किये हुए हैं।
ऐसा नहीं है कि पंजाब केवल रंगीन चित्राकला या छपाई के लिए ही जाना जाता है बल्कि पंजाब अपने रंगीन हस्तशिल्प जो राज्य के लोगों की रंगीन और जीवंत भावना को सामने लाता है। पंजाब में शिल्प की श्रेणी में फुलकारी, काष्ठ कला, लकड़ी की जड़ें, लाह के बर्तन, चमड़े के शिल्प, फर्श के आवरण आदि शामिल हैं और इनका उपयोग सजावटी और उपयोगितावादी उद्देश्यों के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। कई लोगों ने उन्हें अपनी आय के एक मात्रा स्रोत के रूप में अपनाया है। फुलकारी पंजाब का एक पारंपरिक शिल्प है और पंजाबी लोक कला का सबसे अच्छा उदाहरण है। फुलकारी एक प्रकार की कढ़ाई है। इसमें पूरे कपड़े को जटिल कढ़ाई जैसे- क्षैतिज, ऊर्द्धवाधर और विकर्ण टांके के माध्यम से कवर किया जाता है।
पंजाब में कई स्थानों, जैसे होशियारपुर, जालंधर, अमृतसर और भीरा को लकड़ी पर नक्काशी और डिजाइनर फर्नीचर बनाने के लिए जाना जाता है। लकड़ी की जड़ के लिए मुख्य रूप से सीसम की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसमें टेबल टॉप, टीपॉट, ट्रे, टेबल पैर, स्क्रीन, कटोरे, सिगरेट के गमले और शतरंज शामिल हैं। इनका डिजाइन वनस्पतियों, जीवों और ज्यामितीय पैटर्न पर किया जाता है।
पीढ़ी मुख्य रूप से करतारपुर, जालंधर और होशियारपुर में बनायी जाती हैं। चिड़ियों को पहले लकड़ी से उकेरा जाता है और फिर लाह से ढका जाता है और विभिन्न रंगों के धागों से बुना जाता है। पंजाब के अन्य लाह के बर्तन उत्पादों में क्लासिक डिजाइन के साथ पारंपरिक लाख के फर्नीचर शामिल हैं। यहां का काम नक्काशी शैली में है।
बुनाई द्वारा पंजाब में विशेष रूप से ड्यूरिंग (दरी बनाना) का काम बहुत होता हैं। उन्हें विभिन्न आकारों में बुना जाता है, जो ज्यामितीय पैटर्न, जानवरों, पक्षियों, पत्तियों और फूल होते हैं। कालीनों की बुनाई बड़े पैमाने पर विकसित नहीं हुई है क्योंकि यह ड्यूरिंग (दरी बनाना) की बुनाई है। चंडीगढ़ के बाहर मणि माजरा विशिष्ट बनावट और डिजाइन बनाता है।
पंजाब में चमड़े का काम व जूती बनाने का काम भी एक शिल्प है। सोने और बहु रंग के धागों का इस्तेमाल जूतियों को रॉयल्टी और अलंकृत करने के लिए किया जाता
रहा है।
परांदी पंजाब में हस्तशिल्प का एक और रूप है जो कारीगरों के परिष्कृत शिल्पों का प्रमाण है। ये विभिन्न रंग और डिजाइन में राज्य में व हर जगह उपलब्ध हैं। परांदे की सबसे अच्छी किस्में लुधियाना, होशियारपुर, निकोदर, अमृतसर, जालंधर में पाई जा सकती है।
पंजाब की गुड़ियाओं ने भी बहुत लोकप्रियता हासिल की है। ये जीवंत रंगों से सजी हैं और सुंदर पोशाकें हैं। ये पोशाकें उन्हीं रंग-बिरंगे, चटक-मटक लिए हुए कपड़ों से बनाई जाती हैं जो पंजाब के छपाई व रंगाई कला से बनाये जाते हैं। चंडीगढ़ को गुड़िया बनाने का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।
मिट्टी का काम पंजाब के कारीगरों की निपुणता को बढ़ाते हैं। मिट्टी का काम सुस्त सामग्री को कला की उत्कृष्ट कृतियों में बदल देता है। कीचड़ से दीवारों को समतल करना और इस तरह उन पर आकर्षक आकृति बनाना राज्य में एक लोकप्रिय प्रथा बन गई है।
पंजाब की महिलाओं द्वारा बाल्य काल से ही कढ़ाई का अभ्यास किया जाता है, जो कई प्रकार के भव्य रूपांकनों और डिजाइनों का प्रदर्शन करती हैं। कढ़ाई के माध्यम से जीवन के अद्भुत पहलुओं का चित्राण सरासर कलात्मक उत्कृष्टता का वसीयतनामा है। दुपट्टा, चुनरी, शर्ट, सलवार, जैकेट और अन्य वस्तु बुने हुए हैं और बड़े पैमाने पर पंजाब में कढ़ाई के साथ सजी हैं। पंजाब की पेंटिंग के एक और सराहनीय शिल्पकार हैं, जो विशेष उल्लेखनीय भित्ति चित्रा को शानदार सुंदरता दिखा रहे हैं। इस तरह की पेंटिंग मुख्य रूप से द्वारों, छतों या दीवारों पर की जाती है। इसी के साथ चाक मांडने की कला भी प्रचलन में है।
पंजाब के लोक खिलौने विशेषकर टेराकोटा खिलौनों के कई रूपों से शुरू, यह शिल्प कला के कुछ उत्कृष्ट टुकड़ों को प्रस्तुत करने के लिए समय के साथ विकसित हुआ है जो कि कलात्मकता और सामाजिक मूल्यों के मिश्रण हैं। इन शिल्पों के शुरुआती उदाहरणों से सिंधु घाटी सभ्यता के समय का पता लगाया जा सकता है।
टोकरीसाजी, पुराने समय से ही पंजाब के कई हिस्सों में बास्केट सजाने, संवारने व बनाने का अभ्यास किया जाता है। इस शिल्प में ज्यादातर महिलाएँ शामिल होती हैं जो उनके लिए रोजगार का एक जरिया बनती हैं।
पंजाब के कुछ शहरों में बुनाई, कढ़ाई, छपाई के साथ होजरी और ऊन का कारोबार विश्व स्तर पर मशहूर है। सस्ते हैं, टिकाऊ हैं इसलिए भारत की अर्थव्यवस्था में भी निरंतर अपना योगदान दे रहे हैं। इनके अलावा, पंजाब के अन्य शिल्पों में मेटलवर्क, पापियर माचे, सरकंडा (एक तरह की सख्त और मोटी इलास्टिक घास), छाज, मूरा और कई अन्य शामिल हैं।
पंजाब भारत का कृषि प्रदेश होने के साथ-साथ अपनी विशेष पहचान नृत्य, संगीत, गायन, रंग-बिरंगे और चटक-मटक रंगों को लिए हुए लगभग सभी प्रकार के हस्तशिल्पों इत्यादि से बनाये हुए हैं। पंजाब के शिल्पकार विशेषकर हस्त कला के पूरे हिन्दुस्तान के साथ-साथ विदेशों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज
कराये हुए हैं।
- शामभवी