पृथ्वी के उत्तरी गोलार्थ में स्थित एक प्रायद्वीप – भारत। भारत शब्द का संधि विच्छेद करें तो भारत क्षेत्र भारत अर्थात आभा का भा आन्तरिक प्रकाश (ज्ञान रूपी प्रकाश) ़ रत त्र लीन, यानी भारत का शब्दिक अर्थ है – आन्तरिक प्रकाश (ज्ञान रूपी प्रकाश) में लीन। विश्व के अनेक देशों में से केवल भारत ही एक मात्रा ऐसा देश है जिसके नाम का इतना अद्भुत, सारगर्भित एवं संवेदनायुक्त शाब्दिक अर्थ है। वैसे पूरे विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश है जिसके दो आधिकारिक नाम हैं – हिन्दी में भारत और अंग्रेजी में इंडिया।
एक मान्यता यह भी है कि भारत का यह हिन्दी नाम, श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित मनु के वंशज ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्रा एवं इतिहास प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट भरत के नाम पर है जबकि इंडिया नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के किनारे विकसित अति प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता ;प्दकने टंससमल ब्पअपसपेंजपवदद्ध के अंग्रेजी नाम इंडस से हुई है। प्राचीनकाल में यहां के ऋषियों ने इसे एक और नाम हिन्दुस्तान की भी संज्ञा दी थी। आज भी इसे भारत और इंडिया की तरह ही पर्याय नाम के रूप में प्रयोग किया जाता है।
कई मामलों में अनोखा भारत ही एक मात्रा ऐसा देश है जिसे यहां के निवासियों ने अपनी माँ की संज्ञा दी है। शायद ही कोई भारतवासी इसे केवल भारत शब्द से सम्बोधित करता हो। देश के साथ देशवासियों का ऐसा संवेदनशील सम्बंध भारतीयों की अलौकिक मनः स्थिति और अनुपम संस्कार को दर्शाता है। यही कारण है कि अंग्रेजो की गुलामी हो या विदेशी आक्रमणकारियों का उत्पात, भारत के वीर सपूतों ने अपनी जान की परवाह किए बिना भारत माँ के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
भारत माता के रूप में पूजित यह देश अपने आप में कई विविधताओं को संजोए अद्भुत एवं विलक्षण विशेषताओं से परिपूर्ण है। पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में स्थिति भारत का भौगौलिक विस्तार 80 8’ उत्तरी अक्षांस से 370 6’ उत्तरी अक्षांस तक तथा 680 7’ पूर्वी देशान्तर से 970 25’ पूर्वी देशान्तर तक है। कर्क रेखा पर अवस्थित भारत पृथ्वी के सामान्य जलवायुवीय वर्गीकरण के उष्णकटिबंधीय पट्टी पर स्थित है परन्तु उत्तर में विश्व के सर्वोच्च पर्वत शिखर हिमालय की पर्वत श्रेणियों के बाड़े से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर तक विस्तारित भारत में एक दो नहीं पूरी छः ऋतुएं व छः जलवायुविक क्षेत्रा मौजूद हैं।
समूची पृथ्वी पर जितने भी जलवायु या प्राकृतिक स्थलीय आयाम सम्भव हैं वे सारे के सारे भारत में मौजूद हैं। प्रकृति
द्वारा भारत को स्वतः उपलब्ध ये अद्भुत एवं विलक्षण विविधताएं आश्चर्य नहीं तो और क्या हैं। आखिर ऐसा क्यों……? सृष्टि के रचयिता भारत पर इतने मेहरबान क्यों…..? यह सृष्टि के रचयिता का एक राज है परंतु राज के तह तक जाने का निरंतर प्रयास सदा से ही मानव मन की उत्कृष्ट अभिलाषा रही है।
यदि गहनता से परत दर परत भारत की इन भौगोलिक रचनाओं का अध्ययन किया जाए तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि भारत प्रकृति की अनुसंधानशाला ;त्मेमंतबी ब्मदजतमद्ध है। प्रयोगशाला के परिवेश में उपस्थित सभी स्थितियों को एकत्रा कर संजोया जाता है और विभिन्न अनुसंधान किए जाते हैं। ठीक उसी प्रकार प्रकृति ने पूरे विश्व में पाए जा सकने वाले लगभग सभी भौगोलिक आयाम भारत को उपलब्ध कराए हैं। यही कारण है कि प्राचीन काल में मानव जीवन से सम्बंधित लगभग सारे अनुसंधान भारत की भूमि पर ही किए गए। यहां प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अपने पुरुषार्थ, ज्ञान और शोध में अपने को तपाकर अनेक शास्त्रों की रचना की, उसे विकसित किया और आने वाली पीढ़ी के जीवन को सुलभ जीवन कला प्रदान की। यदि आप ऋषि शब्द के उच्चारण पर ध्यान केंद्रित करें तो क्या यह नहीं लगता कि अनुसंधान के लिए प्रयुक्त आज का रिसर्च ;त्मेमंतबीद्ध शब्द ‘ऋषि’ से लिया गया है।
भारत की जलवायु तथा भौगोलिक संरचना में अनेक क्षेत्राीय विविधता विद्यमान है। इसमें हिमालय पर्वत, तित्बत के पठार, थार का मरुथल और भारत की हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर अवस्थिति महत्वपूर्ण है। हिमालय और हिन्दुकुश की पर्वत श्रेणियां मिलकर प्राकृतिक दीवार बनाते हैं तथा भारत की उत्तर से आने वाली ठंडी कटाबैटिक पवनों से रक्षा करते हैं। यहां थार का मरुथल, उत्तर का सिन्धु-गंगा का जलोढ़ मैदान, कई महत्वपूर्ण और बड़ी नदियां जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्रा, यमुना, गोदावरी और कृष्णा आदि नदियों का जाल, समुद्र तट, सुन्दरवन का डेल्टा, सतपुड़ा के घने जंगल आदि-आदि न जाने कितने ही स्वरूप विद्यमन हैं।
परंपरागत रूप से भारत में छह ऋतुएं हैं – शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु और शिशिर ऋतु।
जर्मन मौसमवेत्ता ब्लादिमिर कोप्पेन ने 1900 में मौसम वर्गीकरण का सिद्धांत दिया था। इस वर्गीकरण का आधार यह तथ्य है, कि स्थानीय वनस्पति ही मौसम की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। कोपेन के वर्गीकरण में भी भारत में छह प्रकार की जलवायु का निरूपण है – अल्पाइन, आर्द्र उपोष्ण, उष्ण कटिबंधीय नम और शुष्क, उष्ण कटिबंधीय नम, अर्धशुष्क, शुष्क मरुस्थलीय परंतु भारत के विविध भू-आकृति के प्रभाव में छोटे और स्थानीय स्तर पर भी जलवायु में बहुत विविधता और विशिष्टता मिलती है। ये छोटे और स्थानीय स्तर पर अच्चावच के प्रभाव काफी भिन्न स्थानीय जलवायु की रचना कर सकते हैं।
अतः एक तरफ भारत की जलवायु दक्षिण में उष्ण कटिबंधीय है तो दूसरी तरफ हिमालयी क्षेत्रों में अधिक ऊंचाई के कारण अल्पाइन (धु्रवीय जैसी), एक ओर यह पूर्वोत्तर भारत में उष्ण कटिबंधीय नम प्रकार की है तो पश्चिमी भागों में शुष्क प्रकार की।
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रकृति पूरी दुनिया में जितना भारत पर मेहरबान है उतना किसी अन्य देश पर नहीं। शायद इसका कारण यही है कि यहां देवी-देवता, ऋषि-मुनियों एवं स्वयं नारायण का समय≤ पर आवागमन होता रहा है।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान बिखेरने के लिए भारत को ही चुना, प्रभु श्री राम ने अपनी लीला दिखाने के लिए भारत को ही चुना। भारत का यदि विश्लेषण किया जाये तो अपने आप में पूरा विश्व है। एक ही समय कहीं बाढ़ आती है तो कहीं सूखे का दृश्य होता है, कहीं ठंड पड़ती है तो कहीं गर्मी। कहीं रेगिस्तान तो कहीं बर्फ, आखिर यह सब क्या है?
अपने तमाम विविधताओं को समेटने के बावजूद सांस्कृतिक रूप से भारत इतना समृद्ध है तो निश्चित रूप से यह दैवीय कृपा है। पूरी दुनिया को इस बात से नफरत हो सकती है कि प्रकृति भारत पर ही इतना मेहरबान क्यों है? इस संबंध में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि होने के कारण भारत पर प्रकृति ने इतनी मेहरबानी की है।
पूरी दुनिया में स्पष्ट रूप से यह देखने को मिला है कि मानव ने जब-जब प्रकृति के नियमों के खिलाफ जाकर या उसकी अवहेलना करके कुछ करना चाहा है, उसका दुस्परिणाम देखने को मिला है।
आज अगर पूरी दुनिया में जगह-जगह प्राकृतिक आपदायें देखने एवं सुनने को मिल रही हैं तो निश्चित रूप से यह प्रकृति को चुनौती देने या उसकी अवहेलना के कारण हो रहा है। हालांकि, प्रकृति मानव की तमाम लापरवाहियों एवं कमियों के बावजूद संतुलन बनाने की कोशिश करती है किंतु जब हद हो जाती है तो उसके दुष्परिणाम सामने आ जाते हैं। अभी भी वक्त है, मानव अपनी गतिविधियों को सुधार ले तो प्रकृति माफ करने में भी देर नहीं लगायेगी।