पूर्ण विश्व में ‘बसुधैव कुटंुबकम्’ की भावना ही स्वस्थ समाज का आधार रहा है मगर वर्तमान समय में देखने में आ रहा है कि पूरा विश्व ‘बसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना से प्रेरित होने की बजाय कई हिस्सों में बंट चुका है जिससे तमाम तरह के रास्तों का निर्माण हुआ है। आज किसी भी देश को अपनी देश की सीमाओं और उसकी संप्रभुता को बचाये रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। कहीं जाति के नाम पर, कहीं रंगभेद के आधार पर तो कहीं सांप्रदायिकता के नाम पर मतभेद हावी होते जा रहे हैं।
लोगों को अपनी ही विचारधारा सर्वश्रेष्ठ नजर आ रही है। पूरी दुनिया में कंमोबेश ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। ऐसे वातावरण में यदि हम भारत की बात करें तो स्पष्ट होता है कि आजादी के 50 वर्षों तक देश में ऐसा कोई नेता उभर कर सामने नहीं आया जिसमें राष्ट्र की सुरक्षा, एकता, अखंडता एवं आपसी भाई-चारा बनाये रखने एवं उसे और अधिक मजबूत करने हेतु ठोस विचार देखने को मिले। इस लिहाज से देखा जाये तो माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में 1998 में पहली बार ऐसी सरकार बनी जिसका मुखिया शुद्ध रूप से गैर कांग्रेसी था मगर दुर्भाग्य से अटल जी की सरकार मात्रा 13 दिनों में गिर गई। उसके बाद हुए चुनाव में अटल जी के नेतृत्व में फिर सरकार बनी किंतु उसका कार्यकाल भी मात्रा 13 महीने ही रहा।
तेरह महीने की सरकार गिरने के बाद फिर चुनाव हुआ और उसमें भी अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनी और वह सरकार 2004 तक सत्ता में रही। इस कार्यकाल में माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रीय सोच एवं राष्ट्रीय एकता का नया उदाहरण पेश किया। इस लिहाज से तीन बातें उन्होंने बहुत बेहतरीन कहीं। उन्होंने पहली बात यह कही कि देश की सभी नदियों को आपस में जोड़ दिया जाये जिससे कोई नदी सूखेगी नहीं और उसमें अनवरत जल की आपूर्ति होती रहेगी। इससे उन्होंने भविष्य में आने वाले जल संकट के बारे में भी लोगों को सचेत किया और इसके निदान हेतु आगे बढ़ने का आह्वान भी किया।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कही कि देश के चारों महानगरों को सड़क मार्ग (चतुर्भुज मार्ग योजना) से जोड़ दिया जाये जिससे आवागमन भी सुगम होगा और राष्ट्रीय एकता भी मजबूत होगी। इन दोनों बातों के अतिरिक्त अटल जी ने एक राष्ट्र, एक कर और एक बाजार की भी बात कही। इसके लिए अटल जी की सरकार ने जी.एस.टी. पर विचार करने के लिए पश्चिम बंगाल के तत्कालीन वित्त मंत्राी की अगुवाई में सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों वाली एक सशक्त कमेटी का गठन किया था। जुलाई 2001 में जी.एस.टी. पर विजय केलकर की अगुवाई में टास्क फोर्स भी बनाई गई। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि माननीय अटल जी ने राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्रीय सोच के तहत जी.एस.टी. के लिए गंभीर प्रयास किया था।
चूंकि, उस समय भी भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र में एनडीए सरकार थी और वर्तमान समय में भी जब जी.एस.टी. का सपना साकार हो चुका है तो भी देश में भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार है। आज भी इस ऐतिहासिक कार्य को करने का काम भाजपा एवं भाजपाई प्रधानमंत्राी के द्वारा ही संभव हुआ है इसीलिए कहा जाता है कि जिसकी जैसी सोच होगी उसी भावना से प्रेरित होकर काम करेगा।
चूंकि, भारतीय जनता पार्टी वैचारिक रूप से ऐसी पार्टी है जिसके लिए राष्ट्रीय एकता-अखंडता, राष्ट्रवाद एवं राष्ट्र की मजबूती ही सब कुछ है। भाजपा सिर्फ सरकार बनाने के लिए ही राजनीति नहीं करती है बल्कि वह समाज बनाने के लिए राजनीति करती है। जी.एस.टी के पीछे अटल जी की यही सोच थी कि एक राष्ट्र है तो कर भी एक हो और बाजार भी एक हो और यही भाव वर्तमान प्रधानमंत्राी नरेद्र मोदी का भी है। जी.एस.टी. के बारे में तमाम तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं किंतु वित्त मंत्राी माननीय अरुण जेटली का कहना है कि किसी को भी घबराने एवं परेशान होने की जरूरत नहीं है। हो सकता है कि शुरुआती दिनों में कुछ दिक्कतें आयें किंतु जैसे-जैसे दिक्कतें आयेंगी उन्हें दूर कर लिया जायेगा।
वैसे देखा जाये तो जी.एस.टी. के बारे में कुछ लोग भले ही परेशान हो रहे हों किंतु इससे पूरे देश का सर्वांगीण विकास होगा। तमाम तरह के करों से लोगों को मुक्ति मिलेगी। इससे उन राज्यों को विशेष लाभ होगा जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं या राजस्व की वसूली कम होती है। इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि जी.एस.टी. से चौतरफा, सर्वव्यापी, सर्वस्पर्शी एवं सर्वांगीण विकास होगा।
व्यापारी इस बात को लेकर परेशान हैं कि जी.एस.टी. से जुड़ने के लिए जो लागत आयेगी कहीं वह बहुत अधिक तो नहीं होगी तथा इसमें जो जटिलताएं आयेंगी उससे कैसे निपटा जायेगा? इसके अतिरिक्त दो व्यापारियों के बीच जो कारोबार या लेन-देन होगा उसमें यदि किसी एक से गलती होती है तो उसका खामियाजा दोनों को तो नहीं भुगतना पड़ेगा। इस प्रकार की तमाम आशंकाएं व्यापारियों के मन में हैं जिसे लेकर वे चिंतित हैं किंतु इसका भी समाधान हो जायेगा।
जी.एस.टी. की शुरुआत और उसके साकार होने तक के समय की बात की जाये तो इसका इतिहास बहुत ही रोमांचक एवं उतार-चढ़ाव वाला रहा है। अटल जी के बाद फरवरी 2006 में तत्कालीन वित्त मंत्राी पी.चिदंबरम ने इस बिल को लागू करने की डेडलाइन 1 अप्रैल 2010 तक रखी थी। इसके लिए उन्होंने कमेटी में शामिल सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों को जल्द सहमति बनाने का निर्देश दिया था। नवंबर 2009 में इंपावर्ड कमेटी ने जी.एस.टी. पर पहला वार्ता पेपर निकाला। दिसंबर 2009 में 13वें वित्त आयोग ने भी जी.एस.टी. का समर्थन किया। मार्च 2011 में यूपीए सरकार ने इस संबंध में लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया और उसके बाद इस बिल को वित्त पर बनी स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया। मई 2013 में स्टैंडिंग कमेटी ने इसकी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया।
जी.एस.टी. को लेकर अटल जी की सरकार के बाद गंभीर प्रयास तब शुरू हुए जब 2014 में प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार केन्द्र में सत्ता में आई। सत्ता में आने के बाद मोदी जी की सरकार ने इस बिल को लागू करने के लिए अपने प्रयास तेज कर दिये। राज्यों को मनाने के लिए सरकार ने उनके समक्ष प्रस्ताव रखा कि कर से उन्हें जो घाटा होगा उसकी भरपाई केन्द्र करेगा।
पुनर्संशोधित बिल 2015 में चयन समिति ने राज्यसभा की सिफारिशों को मानते हुए अगस्त 2016 में इसे पास कर दिया। अगस्त 2016 में सरकार ने लोकसभा में बिल को पास कर दिया एवं इसके साथ देश के आधे से ज्यादा राज्यों ने भी इसे पारित कर दिया। 27 मार्च 2017 को सरकार ने लोकसभा में जी.एस.टी. से संबंधित 4 बिल पेश किये। 29 मार्च, 2017 को सभी चारों बिल लोकसभा में पेश हो गये।
अप्रैल, 2017 में राज्यसभा ने चारों बिलों को बिना किसी संशोधन के पास कर दिया। इसी के साथ राष्ट्रपति ने सभी बिलों पर हस्ताक्षर कर दिया। इसके बाद जी.एस.टी. लागू करने की तिथि 1 जुलाई 2017 घोषित कर दी गई। इस प्रकार देखा जाये तो जी.एस.टी. को साकार करने में भाजपा ने अपनी राष्ट्रवादी सोच का बखूबी परिचय दिया है। चाहे वह इसकी शुरुआत में अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार रही हो या अब वर्तमान में प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार हो। जी.एस.टी. को लेकर लोगों के मन में जो भी आशंकाएं उत्पन्न हो रही हैं उसके निराकरण के लिए सरकार एवं इसके एक्सपर्ट अपना पूरा प्रयास कर रहे हैं। उत्पाद कर, सेवा कर, मनोरंजन, वैट जैसे 17 करों को हटाकर पूरे देश में अब एक ही कर लागू किया जा रहा है जी.एस.टी.। इससे देशभर में किसी भी सामान और सेवा का एक ही मूल्य होगा, फिर चाहे वह किसी भी राज्य में उत्पादित हो। इसे तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
आई जी.एस.टी. – जब कोई वस्तु या सेवा दो राज्यों के बीच हो तब लगेगा।
सी जी.एस.टी. – जब केन्द्र वस्तु या सेवा पर कर ले तो सी जी.एस.टी. लागू होगा।
एस जी.एस.टी. – जब एक ही राज्य में वस्तु या सेवा का उत्पादन और वितरण हो।
अब उपभोक्ता को सीधे-सीधे पता होगा कि उसने वस्तु और सेवा का कितना मूल्य दिया और उस पर कितना टैक्स दिया है। जी.एस.टी. को लेकर जो परेशानियां एवं जटिलताएं लोगों को चिंतित कर रही हैं, उससे निपटने के लिए कुछ उपाय किये जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर जी.एस.टी. लागू होने से लगभग एक वर्ष की अवधि को अंतरिम काल मानकर जी.एस.टी. के पालन में जो भी त्राुटि हुई हो उसके लिए व्यापारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाये तो अच्छा होगा। यदि कार्रवाई का मामला बनता है तो कानूनों के अनुसार होना चाहिए।
जी.एस.टी. के अनुपालन में जो व्यापारी ऑनलाईन पूरी तरह न हो पा रहे हों उन्हें यथासंभव मोहलत दी जानी चाहिए। सरकारी स्तर पर इसकी जटिलताओं से लोगों को अवगत कराने के लिए अधिक से अधिक सेवा केन्द्र खोलकर व्यापारियों एवं आम लोगों की मदद की जा सकती है। केन्द्र एवं राज्य स्तर पर अधिकारियों एवं व्यापारियों की एक को-ऑर्डिनेशन कमेटी गठित करके जी.एस.टी. लागू करने और अन्य संबंधित विषयों की देख-रेख की जा सकती है। इस प्रकार कुछ सामान्य तौर-तरीकों को अपनाकर जी.एस.टी. के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सकता है और मदद भी की जा सकती है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जी.एस.टी. का सपना साकार कर प्रधानमंत्राी मोदी एवं केन्द्र सरकार ने आर्थिक क्षेत्रा में इतिहास रच दिया है। इससे भारत की प्रगति के मार्ग और खुलेंगे और लोगों को अधिक से अधिक रोजगार भी उपलब्ध होंगे। पूरे देश में एक दर होने से कोई भी व्यक्ति कोई सामान कहीं से भी खरीद सकता है। लोगों को जी.एस.टी. का तहेदिल से स्वागत करना चाहिए और एक उत्सव के रूप में इसका आनंद लेना चाहिए। इसी में राष्ट्र एवं समाज सबका भला है।