महंगाई का घोड़ा सरपट दौड़ रहा है। उस की लगाम कसने की सरकार की कोशिशें बेकार हो रही हैं। निम्न और मध्य वर्ग उसकी टापों के नीचे कुचल कर कराह रहा है। लेकिन उसकी कराह कोई सुन नहीं रहा है। जिन्हें सुननी है, उन पर महंगाई का असर नहीं पड़ रहा है। वे बयानबाजी में मशगूल हैं। महंगाई का जायजा ले रहे हैं। उनके वातानुकुलित कक्षों में महंगाई की तपिश नहीं पहुंच पा रही है। पहुंच रही होती तो बयानबाजी नहीं करते, कोई ठोस उपाय करते। कृषिमंत्राी अपना दोष औरों के माथे नहीं मढ़ते।
कृषिमंत्राी शरद पवार ने आश्वासन दिया था कि रबी की फसल आने पर महंगाई से राहत मिल सकती है, किंतु अब भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर डाॅ.डी. सुब्बाराव के बयान ने यह आशा तोड़ दी है। उन्होंने यह आशा व्यक्त की है कि अगली जुलाई के बाद महंगाई की तपिश कुछ कम होने के आसार हैं। किंतु यह आसार भी संभावनाओं पर ही आधारित हैं। अगर खरीफ की फसल अच्छी हुई तो महंगाई की रफ्तार पर अंकुश लग सकता है, नहीं तो आम आदमी को यों ही जूझना पड़ सकता है।
आखिरकार इस महंगाई के लिए जिम्मेवार कौन है? कृषिमंत्राी शरद पवार का कहना है कि प्रधानमंत्राी डा. मनमोहन सिंह भी जिम्मेवार हैं, फिर कहने लगे सभी निर्णय काबीना की बैठक में लिए जाते हैं और इस लिए यह मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेवारी है। उन्होंने यह नहीं बताया कि संसद और संसद से बाहर उन्होंने जो बयान दिये, वे क्या मंत्रिमंडल की स्वीकृति के बाद दिये। उन्होंने जब-जब मुंह खोला, महंगाई बढ़ी। गतवर्ष जुलाई में उन्होंने कहा कि चीनी के दाम बढ़ सकते हैं, 40-50 रु. प्रति किलो हो सकते हैं। और चीनी के दाम आसमान छूने लगे। 30-35 रु किलो बिकने वाली चीनी 45-50 रु. प्रति किलो हो गयी। इसी तरह चावल, गेहूं, दालों और सब्जियों के दाम भी उनकी बेवक्त की बयानबाजी से ही बढ़े। अब उन्होंने यह कहकर दूध के दामों में उबाल पैदा कर दिया कि उत्तर भारत में दूध का उत्पादन कम हो रहा है, इसलिए दाम बढ़ाने का दबाव है। यह दबाव था या नहीं, किंतु दूध के दाम दो रुपये प्रति लीटर बढ़ गये। टोंड और डबल टोंड दूध एक रुपया मंहगा हो गया। फिर वह कहते हैं कि जिंसों के दाम बढ़ने के लिए उन्हें ही जिम्मेवार क्यों ठहराया जा रहा है। किसी और कृषि मंत्राी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया गया, फिर मेरे साथ क्यों किया जा रहा है? किसी और कृषिमंत्राी की कोई लाॅबी नहीं थी। आपकी शुगर लाॅबी है। आपकी चीनी मिलें हैं। फिर आपको कठघरे में क्यों न खड़ा किया जाये? अब आप कह रहे हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक की कड़ाई से नहीं थमेगी महंगाई। फिर उपाय क्या है।
किंतु ऐसा कभी नहीं हुआ। जिंसों के दाम बढ़ तो जाते हैं, कम नहीं होते। सब्जियों के दामों में अवश्य कमी हो जाती है, बशर्ते सब्जियों की आपूर्ति और मांग में संतुलन स्थापित हो। कुछ सब्जियों का भंडारण भी किया जा सकता है, जैसे आलू तो फिर उनके दाम भी कम होने वाले नहीं। महंगाई पर अंकुश लगाने के सारे उपाय तब तक निष्फल रहेंगे, जब तक कि जमाखारों के खिलाफ योजनाबद्ध कार्रवाई नहीं की जायेगी। यह कार्रवाई नहीं की जा रही है। कभी इस चीनी मिल और कभी उस चीनी मिल में छापा मारने और चीनी निकलवाने से चीनी सस्ती नहीं होगी। अनाज के भी बड़े-बड़े गोदाम हैं, उन पर छापा मारने की भी जरूरत है। ऐसा अभियान चलाया जाये कि जमाखोर जमाखोरी करने से डर जायें। बहरहाल, महंगाई थमने की कोई उम्मीद नहीं है। हो सकता है कि अभी पूरे साल इससे जूझना पड़े। लोग तिल-तिल कर महंगाई की आंच में तपते रहें और कृषि और खाद्यमंत्राी आश्वासन पर आश्वासन देते रहें।