इस अंक के साथ ‘युग सरोकार’ का दूसरा वर्ष प्रारंभ हो रहा है। इस पत्रिका की एक वर्ष की यात्रा के कई अनुभवों में एक अनुभव यह भी है कि यह पत्रिका निष्पक्ष और तटस्थ रही है। आज के राजनीति-प्रधान युग में निष्पक्षता खतरनाक बात हो सकती है, लेकिन यह अक्षरशः सत्य है कि सत्ता के शीर्ष पर आसीन किसी भी राजनेता की पसंदगी-नापसंदगी की हमने परवाह नहीं की और जो विश्लेषणात्मक दृष्टि में जायज और सामाजिक हित के लिए उचित लगा, वही लिखा।
आज की राजनीति विषवृक्ष की तरह हो गयी है, तो हमने उसे उसी रूप में देखा, लेकिन साथ-साथ यह भी किया कि कैसे उस विषवृक्ष में भी अमृत-तुल्य फल लगेंगे। समाज के हित को विचार-पथ में रखकर जब हम कुछ लिखेंगे या पत्राकारिता करेंगे तो विष वृक्ष अमृत-वृक्ष के रूप में परिवर्तित हो जाएगा। यही अध्यात्म और साधना की परिणति है। इसलिए हमने घृणा, विद्वेष, गाली-गलौज और कीचड़ उछालू पत्राकारिता का रास्ता अख्तियार नहीं किया, प्रत्युत वैचारिक, रचनात्मक और आध्यात्मिक आंदोलन के पथ पर चलना श्रेयस्कर समझा।
महाभारत में कम राजनीति नहीं थी, लेकिन संपूर्ण राजनीति के आवृत में हुए भीषण युद्ध में आध्यात्मिकता की पवित्रा शंखध्वनि थी, इसीलिए वह धर्मयुद्ध कहा जाता है। उसी आध्यात्मिक पुट के कारण कुरुक्षेत्रा में जो भी जीवन-धर्म और राजनीति के संबंध में कृष्ण ने सात सौ श्लोक कहे, वे सभी मंत्रा की तरह पवित्रा और दिशा-निर्देश देने वाले हैं। कुरुक्षेत्रा के मैदान में या कौरव-पांडव के बीच हुए युद्ध में जो राजनीतिक दांव-पेंच थे, वे सभी कृष्ण के अध्यात्म से संचालित होते थे। इसीलिए प्रसंगात् हमने यह कहा कि इस देश की राजनीति को भी हम अध्यात्म के मार्ग दर्शन से इस पत्रिका के जरिये चलाना चाहते हैं। इसमें पाठक भी सहयात्राी बनें।
हमने वैचारिक, रचनात्मक और आध्यात्मिक आंदोलन शब्द का प्रयोग इसीलिए किया, क्योंकि राजनीति तभी समाजोन्मुखी, आदर्शोन्मुखी और देशोन्मुखी हो सकती है जब उसका सम्बल आध्यात्मिक हो। राजनीति के लिए आध्यात्मिकता जीवनी-शक्ति है, जिससे पुष्ट हो कर ही राजनीति समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है। भारतीय समाज की ऐसी रूपरेखा है जिसमें समस्याओं का समाधान तभी हो सकता है, जागृति तभी आ सकती है जब उसमें अध्यात्म की शंख-ध्वनि हो। तभी पत्राकारिता संकीर्ण पूर्वाग्रहों को कुचल कर नये स्वास्थ्यप्रद, आध्यात्मिकता की स्वच्छ हवा में सांस ले सकती है, जिसमें नये जीवन का निर्माण होगा, रचनात्मक और सकारात्मक ऊर्जा को नयी शक्ति-स्फूर्ति मिलेगी। हम इसी आशा-विश्वास, सिद्धांत-आदर्श और दर्शन-प्रेरणा को लेकर राजनीति के तुमुल कोलाहल में जीवन में नयी जागृति का संचार करने के लिए आध्यात्मिकता का दीप जलाकर चल रहे हैं, जिससे देश में नयी आशा हो, नया हर्ष हो और नया उत्कर्ष हो।
अमरेन्द्र कुमार