संगीत हमारे मन का पवित्रा भावोच्छ्वास होता है। भारतीय संगीत की पवित्राता और प्रभावत्ता तो अलग से रेखांकित करने लायक है। संगीत के माध्यम से ईश्वर की भक्ति की जाती है, ऐसा भारतीय संगीत में कई उदाहरण हैं। दूसरी ओर इसके प्रभाव से किसी भारतीय संगीतकार ने मेघ से जल बरसाया, तो किसी ने बुझे हुए दीपक को जला दिया। यही सोच कर राष्ट्रमंडल के खेलों के लिए प्रसिद्ध संगीतकार ए.आर. रहमान को थीम सांग की रचना करने के लिए जिम्मेदारी सौंपी गयी। उन्होंने गुलज़ार के गीत ‘जय हो’ को पूरी दुनिया के संगीत-प्रेमियों के दिल की धड़कनों में बसा दिया था। उस समय तो उन्होंने बटेर मार ली थी, लेकिन इस बार वे बटेर नहीं मार सके।
रहमान से इस बार भी उम्मीद थी कि जब थीम सांग लोगों के कानों में मंत्रा की तरह अमृत बरसाएगा तो लोग उसकी स्वर-लहरियों पर झूम उठेंगे, लेकिन उस गीत के लफ्ज और आवाज का जादू हमारे दिल की धड़कनों में नहीं समा पाया। अगर इसी संगीत के लिए उन्होंने 15 करोड़ रुपये मांगे थे, तो उनकी मांग निरर्थक थी। ‘इंडिया बुला लिया’ गीत और म्युजिक भारत की सांगीतिक गरिमा और परम्परा के अनुकूल नहीं है। भारतीय संगीत तो ईश्वर की भक्ति है। जब कोई संगीतकार भक्ति में डूबकर साधना करता है, तो उस संगीत की लयात्मकता और स्वर-लहरी में दैवी दीप्ति आ जाती है। अभी हाल का ही उदाहरण लें। संगीत-साधक अल्लाउद्दीन खां मैहर में मां शारदा की मूर्ति के सामने संगीत की साधना करते हुए भक्ति में तन्मय हो कर निरंतर आंखों से अश्रुधार प्रवाहित करते थे। यही कारण है कि उनके संगीत में करिश्मा था। उन्हीं के शिष्य हैं पंडित रविशंकर, जिन्होंने संगीत की स्वर-लहरियों पर संपूर्ण देश ही नहीं, पूरी दुनिया के संगीत-प्रेमियों को आह्लादित-आनंदित किया है। अगर उन्हीं से अनुरोध किया जाता तो वह संगीत हमारे श्रुति-रन्ध्रों में अमृत-वर्षा करता। विदेश के लोग उनके संगीत को सुनते।
अगर विदेशियों को रिझाना था, तो मंच पर किसी से थीम सांग की पंक्तियां गवा कर अगर कुछ संपेरों से बीन ही बजवा दिया जाता, तो वह भारतीय संगीत की परम्परा को दर्शाता। विदेशी इसे आकर्षण के साथ सुनते। इस थीम सांग को शायद उन लोगों ने पास किया होगा, जो सांगीतिक चेतना-सम्पन्न नहीं हैं और संगीत का उनका नन्दतिक (सौंदर्यात्मक) भावबोध उत्कर्षपूर्ण नहीं है। इस थीम सांग को तो सरकारी स्तर पर भी पसंद नहीं किया जा रहा है।
जब देश को आजादी मिली थी और लाल किले से पहला भाषण पंडित जवाहरलाल नेहरू को देना था, तो उन्होंने विशेष रूप से वाराणसी से शहनाई-वादक बिस्मिल्ला खां को आमंत्रित किया था। राष्ट्रमंडल खेल के लिए भी देश के शीर्षस्थ शास्त्राीय संगीतकारों से अनुरोध कर उनसे थीम सांग की प्रस्तुति कराया जाता तो निश्चय ही कला-संगीत के लिए पूरे संसार में नाम रौशन करने वाले भारत की गरिमा इस बार भी चमक उठती।
त्र अमरेन्द्र कुमार