कमर कस कर रहना है तैयार


भ्रष्टाचार के असंख्य रूप हैं, जिनसे वह देश की जनता का सुख-चैन, जिंदगी की आशा-आकांक्षा, प्रगति-समृद्धि की गत्यात्मकता सबकुछ लील जाता है। वह राहु-केतु की तरह नैतिकता के सूर्य को, उससे निकलने वाली धूप की ऊर्जा को छीन लेता है – जिस धूप में उज्ज्वलता, आस्था, प्रेरणा, आस्था-स्फूर्ति होती है, वही छिन जाती है। उससे मुकाबला करना सचमुच दुरूह कार्य है। रावण के तो केवल दस सिर थे, लेकिन राम जैसे वीर योद्धा को भी मुकाबला करना मुश्किल हो रहा था। लेकिन  इस भ्रष्टाचार के तो अनेक सिर हैं। वह ब्रह्म की तरह ‘एकोऽहम् बहुस्याम्’ है यानी सारे रूपों में वह (भ्रष्टाचार) मौजूद है। देश की आंख जिस ओर देखती है, वहीं भ्रष्टाचार है।

किसी भी देश की शिराओं में भ्रष्टाचार का रक्त प्रवाहित होने लगता है तो समानता का नीतिशास्त्र खंडित हो जाता है। इससे समय के निकष पर किसी के अधिकार, आजादी, समानता और सम्मान का कोई मानदण्ड निश्चित नहीं किया जा सकता है। इससे सामाजिक व्यवस्था का प्रतिमान ही ध्वस्त हो जाता है। धन और सम्पत्ति पर धीरे-धीरे भ्रष्टाचारियों का वर्चस्व बढ़़ने लगता है। उनके शिकंजे में राजनीति, उद्योगपति और यहां तक कि बुद्धिजीवी भी आने लगते हैं। लोकचेतना पर व्यक्ति-चेतना का प्रभाव बढ़ने लगता है। देश में विषमता का जो ज्वर उठता है, वह सबको धीरे-धीरे अपने आगोश में लेने लगता है। नैतिक और सामाजिक पहलू से अलग भ्रष्टाचार का यह आर्थिक पहलू भी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसमें सुधार का कोई रास्ता भी नहीं दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि भ्रष्टाचार अंधेरी सुरंग की मानिंद है। राजनीतिक प्रक्रिया से इस कल्मष को साफ किया जा सकता है, लेकिन राजनीति विश्वसनीय नहीं रह गयी है, क्योंकि इससे आदर्शवादी, सिद्धांतवादी, शुभ्र और उज्ज्वल व्यक्तित्व वाले लोग अलग हो गये हैं। अलग इसलिए हो गये हैं कि राजनीति करने के लिए, सत्ता पर आसीन होने के लिए संसद में जाना जरूरी है और संसद में जाने के लिए एक प्रत्याशी को कम-से-कम 15 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। फिर राजनीति में चरित्रवान लोग कैसे जा सकते हैं, जिनकी झोली में भ्रष्टाचार के कीमती रत्न भरे हों, वही संसद में जा सकता है।

जब चारोंओर निराशा, हताशा और विपदा की स्थिति हो, तो किसी-न-किसी रूप में खूनी विद्रोह का रास्ता खुल सकता है या गांधीवादी रास्ता से सुधार का प्रयत्न किया जा कसता है। निराशा के अंधकार में भटकती हुई जनता में आशा का अमर आलोक विकीर्ण करने के उद्देश्य से अन्ना हजारे आये, तो लोगों के प्राणों में जयगान भर गया, तरुणाई में अरुणाई आ गयी और लोगों में उम्मीद और उत्साह भरने लगा। लोग यह सोचने लगे कि स्वाधीनता के बाद उन्हें भ्रष्टाचार के खात्मे के आंदोलन की सफलता में नयी स्वाधीनता मिलेगी, जनता के अहम् को पहचान मिलेगी, उसे सम्मान और समानता मिलेगी, जिसे भ्रष्टाचार ने रौंद दिया है। आइए हम सब अन्ना हजारे के सपनों के साथ अपने सपने को भी जोड़ दें और आंदोलन की सफलता में जो विरोधाभास और भ्रंातियां आती हैं, उन्हें नजरअंदाज कर दें। अन्ना हजारे के सपनों को इस देश की जनता इसलिए सफल करना चाहती है कि उसे अब बर्दाश्त नहीं होता है कि-

देश के सीने पर अब

रक्त में नहाये भ्रष्टाचार

करता पल-प्रतिपल दानवी अट्टहास

…और सीधी-सादी जनता

पिशाचिनी राजनीति से पाती है उपहास!

इसलिए अब क्रांति की चिनगारी

छिटकाने की जरूरत है

जिससे करोड़ों जिन्दगियों के

सुख-समृद्धि के हम खोल सकें द्वार

सफलता-विफलता तो भगवान के हाथ में है

लेकिन हर आदमी को

कमर कस कर हो जाना है तैयार!

अमरेन्द्र कुमार