आग में शोले उठे…


मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की, आग में शोले उठे, ज्यों-ज्यों हवा की। शायर की यह उड़ान तेलंगाना की स्थिति पर हूबहू लागू होती है। तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव के आमरण अनशन से आतंकित केंद्र सरकार ने पृथक तेलंगाना की मांग स्वीकार करने की जैसे ही घोषणा की, आंध्र प्रदेश की राजनीति में उबाल आ गया। पूरा आंध्र प्रदेश तेलंगाना समर्थकों और अखंड आंध्र के समर्थकों के बीच बंट गया। सांसदों और विधायकों के त्यागपत्रों की झड़ी लग गयी – किन्हीं ने पृथक तेलंगाना के समर्थन में त्यागपत्रा दिये तो किन्हीं ने अखंड आंध्र की मांग को लेकर। त्यागपत्रों की होड़ में सब से अधिक विभाजित हुई कांग्रेस। तेलंगाना और अखंड आंध्र के समर्थकों ने कांग्रेस नेतृत्व और केंद्र सरकार पर अपनी-अपनी मांग को लेकर दबाव डालना आरंभ कर दिया। यह दबाव कांग्रेस के लिए गले की हड्डी बन गया।

पृथक तेलंगाना की घोषणा के साथ ही पूरे आंध्र प्रदेश में हिंसक आंदोलन के दौर ने कांग्रेस के नेतृत्व और केंद्र सरकार को किंकर्तव्य विमूढ़ कर दिया और अब वह अपनी घोषणा से पीछे हटने का रास्ता तलाश रही है। पहले तो उसने तेलंगाना के बारे में सोच-विचार कर निर्णय करने की बात कहकर अपनी पूर्व घोषणा से पैर खींचे, किंतु इसने आग में घी का काम किया। आंदोलन उत्तरोत्तर हिंसक होता जा रहा है।

पृथक तेलंगाना को लेकर आंदोलन की सुगबुगाहट 1952 में आंध्र प्रदेश के गठन के समय ही हो गयी थी, किंतु 1969 में यह आंदोलन हिंसक रूप में सामने आया। किंतु इस समस्या का समाधान करने के लिए झूठे आश्वासनों के अलावा और कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया – न तो केंद्र की कांग्रेसी और न गैर कांग्रेसी सरकारों ने। समस्या को किसी न किसी बहाने लटकाये रखा गया। परिणामतः तेलंगाना आंदोलन आज इतने प्रखर रूप में सामने आया है।

अब केंद्र सरकार द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग गठित करने का मन बना रही है। यह आयोग गठित करके सरकार कुछ वर्षों के लिए तेलंगाना की मांग को ठंडे बस्ते में भले ही डाल दे, किंतु आयोग समस्या का समाधान कर पायेगा, इसमें संदेह है। आयोग के सामने पृथक तेलंगाना का ही मसला नहीं होगा। पृथक तेलंगाना गठित किये जाने के साथ ही पृथक राज्यों के गठन को लेकर जो अनेक आंदोलन सुप्त पड़े थे, उनमें फिर पंख लग गये। आयोग को उन पर भी विचार करना होगा। क्या आयोग भाषा और क्षेत्राीयता के आधार पर राज्यों के गठन को हरी झंडी दे सकेगा? आयोग अगर ऐसा करेगा तो भारतीय गणराज्य का क्या होगा? राज्यों के क्षत्राप क्या केंद्र सरकार को एक मजबूर सरकार नहीं बना देंगे? केंद्र की गठबंधन सरकार आज भी मजबूत सरकार नहीं है। गठबंधन में नाक में दम किये रहते हैं। कल्पना कीजिए कि 28 की जगह अगर 50 राज्य भी बन गये तो केंद्र सरकार का स्वरूप क्या होगा? सभी क्षत्राप डरा-धमका कर आने-अपने अनुकूल निर्णय कराने की राह नहीं पकड़ लेंगे? तेलंगाना की बोतल से निकले जिन्न को बोतल में कौन बंद करेगा? कोई कदम उठाने से पहले केंद्र सरकार, विपक्षी दलों और बौद्धिक वर्ग को इन प्रश्नों का हल खोजने के लिए ठोस प्रयास करना होगा।