भारत सरकार की यह कैसी कूटनीति?


भारत के पांच जवानों की हत्या के बाद पूरे देश में एक बात को लेकर बहस चल रही है कि आखिर भारत सरकार कौन-सी कूटनीति पर चल रही है? हमारे देश के सैनिक शहीद होते रहें और सरकार पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाने की चर्चा करती रहे।

अपने किसी भी पड़ोसी देश के साथ अच्छे संबंध बनाने की चर्चा करती रहे। अपने किसी भी पड़ोसी देश के साथ अच्छे संबंध बनाना अच्छी बात है किंतु क्या किसी भी देश से अच्छे संबंध एकतरफा सोच के आधार पर बनाये जा सकते हैं, इसके लिए दोनों देशों को प्रयास करने होंगे। एक तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कहते हैं कि वे भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं तो दूसरी तरफ पाकिस्तान के सैनिक हमारे पांच जवानों की हत्या कर देते हैं। आखिर यह सब क्या है? इस घटना से पूरे देश की जनता में आक्रोश है किंतु सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। ऐसा भी नहीं है कि पाकिस्तान ने इस तरह की हरकत पहली बार की है। इसके पहले पाकिस्तान के सैनिक हमारे दो सैनिकों का सिर काट कर ले गये थे।

एनडीए के शासनकाल में बांग्लादेश के सैनिकों ने बीएसएफ के 16 जवानों की हत्या की थी किंतु हर बार देखने में यही आता है कि कमजोरी का प्रदर्शन हमेशा भारत की तरफ से ही किया जाता है। पाकिस्तान के बारे में एक बात कही जाती है कि वहां नागरिक सरकार का कहना सेना नहीं मानती है। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का नियंत्रण अपनी सेना पर नहीं है तो इसमें भारत क्या कर सकता है? इस समस्या का समाधान तो उन्हें ही ढूढ़ना होगा। यह उनके देश का आंतरिक मामला है इस मसले का समाधान उन्हें ही ढूढ़ना होगा।

हो सकता है कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की दिली इच्छा हो कि वे भारत से दोस्ती चाहते हों किंतु जब उनकी कुछ चलती ही नहीं है तो उनसे बात करने का लाभ ही क्या? भारत सरकार तो उसी से बात कर सकती है जिसके पास शक्ति हो। हालांकि, इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं हुआ जा सकता है कि मियां नवाज शरीफ के इरादे एकदम नेक हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच जब भी इच्छे संबंध बनने शुरू होते हैं तभी पाकिस्तान की सेना ऐसा कुछ काम कर देती है, जिससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव व्याप्त हो जाता है। संबंधों को खराब करने की पहल हमेशा पाकिस्तान की तरफ से की जाती है किंतु बाद में नसीहत दी जाती है कि दोनों देश संयम बनाये रखें।

समझ में नहीं आता कि दोनों देशों को संयम बरतने की नसीहत क्यों दी जाती है? भारत तो अपना सब कुछ लुटा कर बैठा है। अब यह पूरी तरह प्रमाणित हो चुका है कि पाकिस्तान भरोसे का राष्ट्र नहीं है। भारत ने जब भी उस पर भरोसा किया है, धोखा खाया हैं। एनडीए के समय में श्री अटल बिहारी वाजपेयी बस लेकर पाकिस्तान गये थे, लेकिन बदले में मिला कारगिल का युद्ध। देखने की बात यह है कि दोनों देशों के भावों में कितना अंतर है? कहां भारत की अच्छे संबंधों की इच्छा, कहां पाकिस्तान की युद्ध की चाहत। पाकिस्तान की बात क्या की जाये, वह तो एक गैर जिम्मेदार राष्ट्र है। जहां भारत के खिलाफ साजिश रचने वालों को प्रोत्साहन मिलता हैं। वहां के नेता झूठ पर झूठ बोलने में अभ्यस्त हैं। पाकिस्तान के नेताओं को झूठ बोलने में कोई संकोच नहीं है।

अब सवाल यह उठता है कि भारत सरकार यदि कोई बात करना चाहे तो किससे करे? क्योंकि प्रधानमंत्री तो नवाज शरीब है किंतु वे जो कुछ वादा करके जायेंगे, उस पर अमल नहीं करवा सकते, क्योंकि वास्तविक सत्ता तो सेना, जेहादी तत्वों और आईएसआई के पास है। भारत सरकार पाकिस्तान को जब तक इस बात का एहसास नहीं करायेगी कि उसकी हर हरकत का माकूल जवाब दिया जायेगा, तब तक वह मानने वला नहीं है, क्योंकि ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं।’ पाकिस्तान के मामले में भारत सरकार कौन-सी कूटनीति कर रही है, यह देश की जनता की समझ में नहीं आ रहा है। भारत सरकार का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह सेना के जवानों के मान-सम्मान के साथ खिलवाड़ न करे, अन्यथा सरकार की चुप्पी कहीं उसके लिए ही कभी घातक न बन जाये।