जलती रेत पर सफर


यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष की अवधि पूरी हो चुकी है, जिसका सादा जश्न मनाने की योजना थी, लेकिन विमान दुर्घटना के हादसे को दृष्टि-पथ में रखते हुए इसे फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। जश्न अपनी जगह पर है, हम बात करेंगे उसके दूसरे कार्यकाल के विश्लेषण की। कांग्रेस अब देश की नियति, अपनी अस्मिता और अनुशासनिक शक्ति के अनुरूप चलने वाली पुरानी पार्टी नहीं रही। सत्ता के शीर्ष पर रहने के लिए उसने कई पार्टियों से गठबंधन कर लिया है। वह अब एक ऐसा दरख्त बन चुकी है, जिसकी कई गांठें हैं और वे चुनाव आते-आते कभी भी खुल सकती हैं। सरकार में शामिल महत्वपूर्ण घटकों में डीएमके और तृणमूल अलग से रेखांकित करने वाली पार्टियां हैं जो अपने तेवर में रहती हैं। यूपीए की सरकार का पेड़ कहीं धराशायी न हो जाये, इसलिए प्रधानमंत्राी मनमोहन सिंह को कभी चेतावनी देते हुए और कभी टेकते हुए उनके साथ समन्वयवादी कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ता है। एक वर्ष पूरा होने पर सरकार को इस बात का विश्लेषण जरूर करना चाहिए था कि बेलगाम घटकों से समझौता करते हुए क्या कांग्रेस के आंतरिक ढांचे को मजबूत रखना संभव है?

भले ही कांग्रेस की दूसरी पारी के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में किसी हादसे के कारण समारोह नहीं मना हो, लेकिन उसकी तैयारियां तो पूरी हो ही चुकी थींे। उन तैयारियों में ऐसा लगा कि इस पार्टी ने अपनी संस्कृति खो दी है। संस्कृति एक लम्बी परंपरा के बाद अपनी शक्ल अख्तियार करती है, जिसमें किसी व्यक्ति, समाज, देश अथवा पार्टी का श्र्रेष्ठत्व निहित होता है। कांग्रेस की संस्कृति का भी श्रेष्ठत्व है जो अन्य पार्टियों की महत्ता से अलग है। वह श्रेष्ठत्व गांधी में, नेहरू में और इंदिरा जी में था। उसका अंशमात्रा भी सोनिया गांधी या मनमोहन सिंह की कांग्रेस में परिलक्षित नहीं हो रहा है। सोनिया गांधी तो बस अपनी सास इंदिरा गांधी की छाया में पुलकित और प्रशंसित हो रही हैं और राहुल उनकी उंगली थामे आज भी एक बच्चे की तरह हरकतें करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। मनमोहन सिंह भले ही संभ्रांत, शीलवान, संयत और मनमोहिनी व्यक्तित्व वाले हैं, फिर भी उन दोनों के कंधे पर सवार होकर चलने वाली कांग्रेस या यूपीए सरकार में न वह आभामंडित गरिमा है, न वह सतेज प्रवाह की नदी-सी गति है और न कदमों में गजराज-सी चाल का भारीपन। यूपीए के घटकों की खींचतान से लड़खड़ाहट वाली चाल साफ तौर पर देखी जा सकती है। यूपीए की सरकार अपनी चैतरफा विफलताओं का दर्द अपने दिल में समेटे हुई लड़खड़ाती चाल से चल रही है, यही है कांग्रेस के श्रेष्ठत्व का पतन। उसके दर्द को और रास्ते की मुश्किलों को उसकी आंखों में झांक कर देखा और महसूसा जा सकता है। यूपीए सरकार जलती रेत पर आगे बढ़ रही है और उस मंजिल की तलाश कर रही है, जहां ठंडी और ताजा हवा उसे मिल सके।

……अमरेन्द्र कुमार